*शनि ग्रह परिचय *
प्राचीन व अर्वाचीन ज्योतिषियों ने शनि को अंधेरा,
भय, चिंता, दुख, दुर्भाग्य, व्यग्रता, जीवन, मृत्यु, लोहा,
शीसा, वृद्धावस्था, चोर, बाधा, दैन्य, शोक, मोह, विलम्ब,
आलस, मंद, उद्योग, व्यंग, निर्वाह साधन, कृष, काला, काल, त्याग
संन्यास, आदि का करक माना है ।
शनि के गन दूसरे ग्रहों की तुलना से अच्छे समझने आते
है । शनि के गुण कुछ हद तक मंगल के गुणों के विरोधी
होते है । उतावला पण, अविचारी यह गुण मंगल के गुणों में
अधिक दिखाई देते है । शांत, मंद, विचारी, गंभीर
गुण मंगल के कार्य में होते है । शनि के पास आनंद का भाव बहुत
ही कम बार मिल जायेगा । शुक्र जैसा शनि भावना
शील या समाज प्रिय नहीं है ।
शनि विचारी, एकांगी, अकेला रहने वाला है । अगर
शुक्र गलों के ऊपर हिलकोरे (dimple) है, तो शनि गलों के ऊपर
शिकन है । शनि मन ही मन में सोचने वाला है, हर बात को
गुप्त रख्नने वाला है । गुरु प्रकाश है तो शनि अंधकार है । शुक्र,
मंगल और गुरु में कुछ पाने के आसक्ति है तो शनि पूर्णत: वैराग्य
पूर्ण ग्रह है ।
मंगल के कार्य मे जो उत्साह है, जो जोश है, वो शनि के कार्य में
नहीं है । शनि का कार्य भव्य होता है, परन्तु यह भव्यता
मंदता पूर्ण होती है । जीवन में प्रेम भंग का
सामना करने वाला युवक के व्यवहार का अगर अभ्यास करोगे तो,
मंगल प्रधान युवक सुड भावना से उस लड़की की
किसी भी युवक से विवाह ना हो, इसलिए प्रयास
पूर्ण रहेगा । गुरु प्रधान युवक किसी से भी
विवाह हो, परन्तु प्रार्थना करेगा की, जिससे भी
विवाह हो, हमेशा खुश रहे । शुक्र हमेशा उसकी यादो में
रोता रहेगा । शनि प्रधान व्यक्ति जीवन में प्रेम भंग होने के
कारन मन ही मन अंदर से पूर्ण रूप से टूट जायेगा। मंगल
का निर्णय जल्दबाजी में होता है, शनि का निर्णय पूर्ण
विचारांति होता है । गुरु पढाई करके पंडित है, तो शनि
व्यवहार से तपोनिष्ट है |
शनि के गुणधर्म सभी बातों में दिखाई देते है । शनि
सहनशील, उद्यमी, गंभीर स्वभाव का
होता है, शनि सभी बातो में अधिक सोचने वाला,
दीर्घोद्योगी, कई सालों तक मेहनत करने
की तैयारी होती है । शनि के कार्य
उत्तम नियोजन के साथ, सभी तरह की बातों को
सोच कर होता है । इसी कारन बड़े बड़े कार्य शनि कर
सकता है । ऐसे कार्य मंगल की शक्ति या गुरु के ज्ञान से
पूर्ण नहीं होता है ।
शनि: अष्टमत: मृत्यु: ।
शनि के अष्टम स्थान से मृत्यु का विचार किया जाता है ।
शनि कुदरती त्यागी, विरक्ति स्वभाव का है ।
सन्यास प्रिय है । शनि के पास त्याग है, वैराग्य है । शनि पूर्व कर्मों
का प्रारब्ध का करक है । पूर्व जन्म में किये हुए हर कार्य इंसान
विरासत के रूप में आगे ले जाता है । शनि संस्कारो वाला हिस्सा
कुंडली में दिखता है । पूर्व कर्मो के पाप पुण्य का हिसाब इस
जन्म में शनि करवाते है । भोगो और मुक्त हो जाओ यह शनि का
सन्देश है । भोग अगर भाग्य जो जो भोगना क्रम प्राप्त है उसे भोग
कर कर्म मुक्त हो जाइये, यह कहने वाला ग्रह है ।
शरीर में शनि हड्डियों का करक है, शनि कफ़वात प्रकृति का
है। शनि ठण्ड से होने वाले बीमारियाँ, लम्बे समय तक
चलने वाली बीमारियाँ, संधिवात, खांसी, कफ,
महारोग, पैरों की रोग, व्यंग आदि बीमारियाँ
शनि के अभ्यास से देखते है ।
शनि उद्योग-धंदे का कारक ग्रह है । शनि वकील,
न्यायाधीश, उद्योगपति, राजनीती करने
वाले नेता आदि के कुंडली में अच्छी स्थिति में पाया
जाता है.
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